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गीत
शकील बदायूँनी
ग़ज़ल
कैफ़-ओ-कम को देख उसे बे-कैफ़-ओ-कम कहने लगेजब हुदूस अपना खुला राज़-ए-क़िदम कहने लगे
ख़्वाजा मीर दर्द
सूफ़ी कहानी
बादशाह का रोज़ीना कम करना और ग़ुलाम का अ’र्ज़ीयाँ लिखना
किसी बादशाह का एक ग़ुलाम था जिसकी अ’क़्ल मुर्दा और हवस ज़िंदा थी अपने फ़राइज़ में
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
मदीने वाले आक़ा ये तो हसरत कम से कम निकलेतुम्हारा रू-ए-अनवर देख कर आँखों का दम निकले
बह्ज़ाद लखनवी
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सूफ़ी कहावत
हिसाब-ए-ख़ुद न कम गीर-ओ-न अफ़्ज़ूं
अपने हक़ के बराबर का दावा करें, न कम न ज़्यादा
वाचिक परंपरा
सूफ़ी कहावत
तारुफ़ कम कुन-ओ-बर मब्लग़ अफ़जाय
अपना परिचय को सीमित कीजिए और अपनी पुँजी को बढ़ाइए
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
कशफ़ी लखनवी
सूफ़ी उद्धरण
बेहतरीन कलाम वही है जिसमें अल्फ़ाज़ कम और मा’नी ज़्यादा हों।
बेहतरीन कलाम वही है जिसमें अल्फ़ाज़ कम और मा’नी ज़्यादा हों।
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
कम कोई फ़ुक़रा से मिलता है ख़ुदा के वास्तेदफ़-ए’-आ'दा के लिए या कीमिया के वास्ते