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ग़ज़ल
क़यामत की कशिश है तेरी डोरेदार आँखों मेंकि खिच आती है जान-ए-तालिब-ए-दीदार आँखों में
कैफ़ी हैदराबादी
ग़ज़ल
दश्त-ए-पैमाई से है अपनी बयाबाँ नाज़ाँअपनी पा-पोश से है ख़ार-ए-मुग़ीलाँ नाज़ाँ
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
बला के रंज-ओ-ग़म दरपेश हैं राह-ए-मोहब्बत मेंहमारी मंज़िल-ए-दिल तक हमें अल्लाह पहुँचाए
सदिक़ देहलवी
ग़ज़ल
बढ़ा है ज़ौक़-ए-सज्दा इक कशिश सी पाई जाती हैजबीं खींच कर तुम्हारे आस्ताँ तक आई जाती है
फ़ज़्ल नक़वी
रेख़्ता
सिद्क़ रहबर सब्र तोशा, दश्त मंज़िल दिल रफ़ीक़।
सिद्क़ रहबर सब्र तोशा, दश्त मंज़िल दिल रफ़ीक़।सत्त नगरी, धर्म राजा जोग मारग निरमला।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
कलाम
अलिफ़ अलस्त सुणया दिल मेरे जिंद बला कूकेंदी हूहब वतन दी ग़ालब हुई हिक्क पल सौण नून दीनदी हू
सुल्तान बाहू
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दीदम बला-ए-ना-गहाँ आशिक़ शुदम दीवानः हमजानम ब-जाँ आमद हमी अज़ ख़्वेश व अज़ बेगान: हम