दीदम बला-ए-ना-गहाँ आशिक़ शुदम दीवानः हम
रोचक तथ्य
अनु
दीदम बला-ए-ना-गहाँ आशिक़ शुदम दीवानः हम
जानम ब-जाँ आमद हमी अज़ ख़्वेश व अज़ बेगान: हम
मैं ने बला-ए-नागहाँ देखी मैं आशिक़ हो गया, बल्कि दीवाना भी मेरी जान में जान आई और मैं अपनों और अपनों से बेगाना हो गया.
दीवानः शुद ज़ू इश्क़ हम नागह बर-आवर्द आतिशी
शुद रख़्त-ए-शहरी सोख़त: ख़ाशाक-ए-ईं वीरानः हम
इससे इश्क़ भी दीवाना हो गया. अचानक ऐसी आग भड़की शहर का सारा सामान जल गया वीराने के सब ख़स व ख़ाशाक जल गए.
शम्अ'-अन्द ख़ूबाँ कि-अहल-ए-दिल दानंद सोज़-ए-दाग़-शाँ
ईं चाशनीहा-अंद के दारद ख़बर परवानः हम
ख़ूबसूरत लोग शमा’ हैं और उनकी तपिश अहल-ए-दिल जानते हैं इस लज़्ज़त का थोड़ा सा पता परवाने को भी होना चाहिए.
माँदा दो-चश्म-ए-मन ब-रह जाना म-कुन बेगानगी
ईं ख़ान: इनक ज़ान-ए-तू मी-बायदत आँ ख़ान: हम
मेरी दोनों आँख़ें मेरी जान के रसते पर लगी हुई हैं. बेगांगी न करो यह घर तुम्हारा ही घर है वह घर भी तुम्हारा ही है.
ज़े-आईनः मर्दुम ता चरा गीरद ख़यालत रा ब-बर
बहर-ए-चे दर ज़ुल्फ़त दवद दर ग़ैरतम अज़ शान: हम
मैं आईना से चढ़ता हूँ कि वह तेरे ख़याल को अपने अंदर क्यूँ बसा लेने लगी तुम्हारे बालों के अंदर कंघी क्यूँ जाती है मुझे इस बात से भी चिढ़ है.
दो अबरूयत सर-हा ब-हम दर कार दुज़्दी-हा-ए-दिल
दुज़्दीद: चश्मक मी-ज़नद आँ नर्गिस-ए-मस्तानः हम
तुम्हारे दोनों अब्रू इकट्ठे हो कर दिल चुराने का काम करते हैं. वह नर्गिस मस्ताना भी चोरी चोरी आँख मारती है.
हंगाम-ए-मस्ती-ओ-ख़ुशी चूँ बर हरीफ़ान-ए-तरब
गह गह ब-बाज़ी गुल-ज़नी संगे बर ईं दीवान: हम
अपने दोस्तों के साथ मस्ती और ख़ुशी में कभी-कभी फूल फेंकते हो, मुझे दीवाने पर भी पत्थर फेंको.
बर मन जाफ़ाहा कज़ दिलत आयद चे ख़्वाही उज़्र-ए-आँ
रंजी कि बुर्द:स्त आसिया मिन्नत मेनह बर दानः हम
मुझ पर जो जफाएं तुम्हारी तरफ़ से आती हैं, उनका क्या उ’ज़्र तलाश करते हो चक्की को जो तकलीफ़ उठानी पड़ी उसका एहसान-दानों पर मत रखो.
चूँ ख़्वाब नायद हर शबे 'ख़ुसरव' फ़ितादः बर दरत
दर माह-ओ-पर्वीं बनगरद ग़म गोयद-ओ-अफ़सानः हम
हर रात को चूँकि उसे नींद नहीं आती इसलिए ‘ख़ुसरौ’ तुम्हारे दरवाज़े पर पड़ा है. सितारों को देखता रहता है और उनसे अपना ग़म बयान करता है.
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