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फ़ारसी कलाम
मा रा ब-ग़मज़: कुश्त-ओ-क़ज़ा रा बहानः साख़्त
ख़ुद सू-ए-मा न-दीद-ओ-हया रा बहानः साख़्त
मिर्ज़ा मुहम्मद हुसैन क़तील
दकनी सूफ़ी काव्य
रियाज़ उल आरफ़ीन
ढूँढता था चश्मा का लेकर चराग़
देक इब्राहीम कू की अज़ क़ज़ा
इसहाक़ बीजापुरी
सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
हेच काफ़िर दर जहाँ नदेहद रज़ा ।
आँचे क़र्द आँ पीर-ए-इसलाम अज़ क़ज़ा ।।
सुमन मिश्रा
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
अपस मे अपै फ़िक्र कर इस बज़ा
तवक्कुल सते दिल सो रख बर क़ज़ा