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कलाम
दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल कीहक़ीक़त पोछिए जा कर किसी बिस्मिल से बिस्मिल की
अज्ञात
शे'र
वाबस्ता है हमीं से गर जब्र है ओ गर क़द्रमजबूर हैं तो हम हैं मुख़्तार हैं तो हम हैं
ख़्वाजा मीर दर्द
सूफ़ी कहावत
अगर शबहा-ए-हमा शब-ए-क़द्र बूदे, शब-ए-क़द्र बे-क़द्र बूदे
अगर हर रात शब-ए-क़द्र होती, तो शब-ए-क़द्र की कोई महानता नहीं होती।
वाचिक परंपरा
सूफ़ी लेख
मौलाना जलालुद्दीन रूमी
मौलाना शिब्ली के शब्दों में –“मसनवी को जिस क़द्र मक़बूलियत और शोहरत हासिल हुई, फ़ारसी की
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
शाह तुराब अली क़लंदर और उनका काव्य
‘तुराब’ उस्ताद से मालूम कर लोतरीक़-ए-मा’रिफ़त गर क़द्र-दाँ हो
सुमन मिश्रा
गूजरी सूफ़ी काव्य
बूतों का जोर दीवाना दिवाकर मानता हैगा
सियह रोज़ी में मेरी क़द्र को अहबाब क्या जानें,अंधेरी रात में किसको कोई पहचानता हैगा।