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मुसाफ़िर हर क़दर बाशद सुबुक-बार

दारा शिकोह

मुसाफ़िर हर क़दर बाशद सुबुक-बार

दारा शिकोह

MORE BYदारा शिकोह

    मुसाफ़िर हर क़दर बाशद सुबुक-बार

    न-याबद दर सफ़र-ए-तस्दीअ'-ओ-आज़ार

    मुसाफ़िर जिस क़दर कम साज़-ओ-सामान के साथ सफ़र करेगा

    उसे दौरान-ए-सफ़र तकलीफ़-ओ-परेशानी नहीं होगी

    तू हम अंदर जहाँ हस्ती मुसाफ़िर

    यक़ीं मी-दाँ अगर हस्ती तू हुश्यार

    तू भी इस दुनिया में मुसाफ़िर की तरह है

    अगर तू हुशयार है तो इस बात पर यक़ीन कर

    ब-क़द्र-ए-माल बाशद सर-गिरानी

    ब-क़द्र-ए-पेच बाशद बार-ए-दस्तार

    माल के हिसाब से ही बोझ बढ़ता है

    पेच के हिसाब से पगड़ी का बोझ बढ़ जाता है

    तू चूँ ईसा म-कुन बर तकियः तकियः

    कि जा-ए-तकियः हम दस्तत कुनद कार

    अगर तू ई’सा है तो तकिया पर भरोसा मत कर

    इसलिए कि तकिया के बदले कभी कभी हाथ का इस्ति’माल भी कर लेते हैं

    ब-बीं मूसा चू तकियः बर असा कर्द

    असा रा कर्द हक़ दर दस्त-ए-ऊ मार

    देखो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अ’सा पर भरोसा किया

    तो अल्लाह ता’ला ने अ’सा को उन के हाथ में साँप बना दिया

    चरा आज़ादः गीरद बार बर-दोश

    गिरानी चूँ कुनद बर कतफ़-ए-ज़ुन्नार

    आज़ाद-सिफ़त आदमी अपने दोश पर क्यों बार रखे

    ज़ुन्नार भी कभी कभी कंधे पर भारी लगने लगता है

    ख़ुदी रा नीज़ अज़ ख़ुद दूर गर्दां

    कि हम बार अस्त बार-ए-वह्म-ओ-पिन्दार

    ख़ुदी को भी ख़ुद से दूर रखो

    इसलिए कि वहम-ओ-पिंदार का बोझ भी बोझ हुआ करता है

    हज़ाराँ ख़ार गीरद दामन-ए-ऊ

    कसी कज़ बहर-ए-गुल बाशद ब-गुलज़ार

    उस के दामन में हज़ारों काँटे चुभ जाते हैं

    जो फूल के लिए बाग़ में जाया करता है

    तू ता बाशी ब-दुनिया बाश आज़ाद

    तुरा चूँ 'क़ादरी' कर्द: ख़बर-दार

    तू जब तक दुनिया में है आज़ाद रह

    तुझको क़ादरी जैसे शख़्स ने ख़बरदार कर दिया है

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-दारा शुकोह, संकलन: अहमद नबी ख़ाँ (पृष्ठ 109)
    • रचनाकार : दारा शुकोह
    • प्रकाशन : रिसर्च सोसाइटी ऑफ पाकिस्तान, युनिवर्सिटी ऑफ पंजाब (1969)
    • संस्करण : First

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