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सूफ़ी उद्धरण
रूह की गहराई से निकली हुई बात रूह की गहराई तक ज़रूर जाएगी।
रूह की गहराई से निकली हुई बात रूह की गहराई तक ज़रूर जाएगी।
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
दिमाग़-ओ-रूह यकसाँ चाहिएँ इंसान-ए-कामिल मेंये क्या तक़्सीम-ए-नाक़िस है ख़ुदी सर में ख़ुदा दिल में
सीमाब अकबराबादी
बैत
क्यूँ रूह को ख़राब करें जिस्म के लिए
क्यूँ रूह को ख़राब करें जिस्म के लिएजाना है ये लिबास यहीं उतार कर
ज़ाहिद नियाज़ी
कलाम
मंज़ूर आरफ़ी
कलाम
रूह-ए-रवाँ नग़्मा तुम नग़्मों का सोज़ साज़ मेंजान-ए-ख़याल-ओ-ख़्वाब तुम जान-ए-जहान-ए-नाज़ में