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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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सूफ़ी कहावत
चराग़-ए- के ऊ ख़ानः रौशन कुनद बरूख़त उफ़्ताद कार-ए-दुश्मन कुनद
वो चिराग जो घरों को रोशनी देता है, अगर वह किसी के कपड़ों पर गिरे, तो दुश्मन की तरह काम करेगा।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-रौ ब-कार-ए-ख़ुद ऐ वाइ'ज़ ईं चे फ़रियाद अस्तमरा फ़ितादः दिल अज़ कफ़ तुरा चे उफ़्ताद अस्त
हाफ़िज़
सूफ़ी कहावत
आतिश निशान्दन ओ अख़गर गुज़ाश्तन कार-ए-ख़िरदमंदां नीस्त
एक बुद्धिमान व्यक्ति आग को बुझाने के बाद आग की चिंगारी नहीं छोड़ता।
वाचिक परंपरा
नज़्म
शिकवा
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँफ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
फ़ारसी कलाम
आ'शिक़-ए-यारम मरा बा-कुफ़्र-ओ-बा-ईमाँ चे कारतिश्न:-ए-दर्दम मरा बा-वस्ल-ओ-बा-हिज्राँ चे कार
हाफ़िज़
बैत
कुन से तो नहीं चलते इंसाँ के कार-ख़ाने
कुन से तो नहीं चलते इंसाँ के कार-ख़ानेतदबीर से 'अमल से बनते हैं सब ज़माने
मोहम्मद समी
ग़ज़ल
ये अ’जब करिशमा-ए-कार है तिरा तुरफ़ा नज़्म-ए-बहार हैकहीं फूल है कहीं ख़ार है कहीं नूर है कहीं नार है