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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दर सीन: दारम कोह-ए-ग़म दानद अगर यार ईं क़दरशायद कि न-पसंदद दिलश बर जान-ए-मन बार ईं क़दर
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
इ’श्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐ’श-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
इ'श्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
पद
कठिन साधना-पथ - गुरु प्यारे का मारग झीना कोह गुरुमुख जाय
गुरु प्यारे का मारग झीना कोह गुरुमुख जायगुरु प्यारे का मारग झीना कोह गुरुमुख जाय
शालीग्राम
ग़ज़ल
जो चुप बैठूँ तो इक कोह-ए-गिराँ मा'लूम होता हूँजो लब खोलूँ तो दरिया-ए-रवाँ मा'लूम होता हूँ
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
उत्तर- बाज़ारी(272) कोह चे मी दारद,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(272) कोह चे मी दारद, मुसाफ़िर को क्या चाहिए? उत्तर- संग
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
रियाज़ उल आरफ़ीन
सैर बादी के नमन करता फिरूँलाल हो कब कोह में करता हूँ ठार