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दकनी सूफ़ी काव्य
किस्सासुल अम्बिया
अगो चलते थे यूसुफ़ शाद फ़रहाँखुशी करते हुए हँसते ख़िरामाँ
मुहम्मद ग़ौसी
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काफी
परदेस डेहों दीदाँ अड़याँ वे यार
डेख के चाली यार सजन दियाँनाज़-ख़िरामाँ मनमोहन दियाँ
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
ना'त-ओ-मनक़बत
ध्यान है क़ामत-ए-मौज़ून-ए-नबी का हर दमअपना तूबा है यही सर्व-ए-ख़िरामाँ है यही
मोहम्मद हाशिम ख़ान
ग़ज़ल
सबा के नाज़ रा'नाई पे ज़ो'म ख़ुश-ख़िरामी परकिसी सर्व-ए-ख़िरामाँ का ख़िराम-ए-नाज़ याद आया
आरिफ़ बलियावी
ग़ज़ल
क़द-ए-मौज़ूँ तो शमशाद-ओ-सनोबर रखते हैं लेकिनकहाँ पावें लटक की चाल उस सर्व-ए-ख़िरामाँ की
मीर मोहम्मद बेदार
कलाम
ऐ तसव्वुर क्या सुकून-ए-दिल था तुझ को नागवारतू ने उन को सामने ला कर ख़िरामाँ कर दिया
बह्ज़ाद लखनवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
नालः चंदीं म-कुन ऐ फ़ातिहा कि-इम्शब दर बाग़बा गुले साज़ कि आँ सर्व-ए-ख़िरामाँ ईं जास्त
अमीर ख़ुसरौ
ना'त-ओ-मनक़बत
अमीर मीनाई
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा-रा जल्वा-गाह-ए-नाज़ में आ कर ख़िरामाँ होकि दिल क़ुर्बान-ए-मा'शूक़ी है जाँ क़ुर्बान-ए-महबूबी
हसरत अजमेरी
कलाम
तअ'ज्जुब तो ये है पहलू ब-पहलू इश्क़-ओ-उल्फ़त केजमाल-ए-नौ भी मस्ती से ख़िरामाँ है जहँ मैं हूँ
बह्ज़ाद लखनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
हुज़ूर उस राह पर महव-ए-ख़िरामाँ हैं शब-ए-असराजहाँ जिब्रील भी जाए तो बाल-ओ-पर से जाता है