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सूफ़ी कहानी
एक सूफ़ी का अपना ख़च्चर ख़ादिम-ए-ख़ानक़ाह के हवाले करना और ख़ुद बे-फ़िक्र हो जाना - दफ़्तर-ए-दोम
एक सूफ़ी सैर-ओ-सफ़र करता हुआ किसी ख़ानक़ाह में रात के वक़्त उतर पड़ा। सवारी का ख़च्चर
रूमी
कलाम
सहबा अकबराबादी
ग़ज़ल
काम आख़िर जज़्बः-ए-बे-इख़्तियार आ ही गयादिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
काम आख़िर जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार आ ही गयादिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का बे मेहनत हलाल रोज़ी तलब करना- दफ़्तर-ए-सेउम
एक शख़्स दाऊद अ’लैहिस-सलाम के ज़माने में रोज़ाना ये दुआ’ करता था कि ऐ ख़ुदा मुझे
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक ज़ाहिद का बे-क़रारी में अपना अ’ह्द तोड़ देना- दफ़्तर-ए-सेउम
मैं एक हिकायत बयान करता हूँ अगर तुम ग़ौर करो तो हक़ीक़त पर फ़रेफ़्ता हो जाओ।
रूमी
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त में याद उस बे-ख़बर की बार बार आईभुलाना हम ने भी चाहा मगर बे-इख़्तियार आई
हसरत मोहानी
शे'र
बेदम शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
रौनक़-ए-शान-ए-बे-निशाँ नाम-ओ-निशाँ में भी आजे़ब-ए-फ़िज़ा-ए-ला-मकाँ अब तो मकाँ में भी आ