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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
जाम-ए-शराब-ए-’इरफ़ाँ हम को पिला दे साबिर
रंग-ए-दुई हमारे दिल से मिटा दे साबिर
आशिक़ मुस्तुफ़ाबादी
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बैत
ज़रा ऐ गर्दिश-ए-दौराँ के मारो
ज़रा ऐ गर्दिश-ए-दौराँ के मारो
ये सोचो हम भी ज़ेर-ए-आसमाँ हैं
अतहर नियाज़ी
फ़ारसी कलाम
मरा कि ला'ल-ए-लबत साक़ीस्त-ओ-जाम-ए-शराब
अज़ आँ चू नर्गिस-ए-मस्त-ए-तू-अम मुदाम ख़राब
शम्स मग़रिबी
सूफ़ी कहानी
एक बादशाह का मुल्ला को शराब पिलाना - दफ़्तर-ए-शशुम
एक बादशाह रंग रैलियों में मस्रूफ़ था कि एक मुल्ला उस के दरवाज़े पर से गुज़रा
रूमी
ग़ज़ल
पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो
जियूँ ग़ुंचा लब कूँ बंद कर ख़ामोश हो ख़ामोश हो
सिराज औरंगाबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अ'क्स-ए-रू-ए-तु चु दर आईना-ए-जाम उफ़्ताद
आरिफ़ अज़ परतव-ए-मय दर तमअ'-ए-ख़ाम उफ़्ताद