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सूफ़ी कहावत
चराग़-ए- के ऊ ख़ानः रौशन कुनद बरूख़त उफ़्ताद कार-ए-दुश्मन कुनद
वो चिराग जो घरों को रोशनी देता है, अगर वह किसी के कपड़ों पर गिरे, तो दुश्मन की तरह काम करेगा।
वाचिक परंपरा
बैत
कुन से तो नहीं चलते इंसाँ के कार-ख़ाने
कुन से तो नहीं चलते इंसाँ के कार-ख़ानेतदबीर से 'अमल से बनते हैं सब ज़माने
मोहम्मद समी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-रौ ब-कार-ए-ख़ुद ऐ वाइ'ज़ ईं चे फ़रियाद अस्तमरा फ़ितादः दिल अज़ कफ़ तुरा चे उफ़्ताद अस्त
हाफ़िज़
ग़ज़ल
धोके पे धोका खाए जा 'इश्क़ को सादा कार करहुस्न के दिल में घर बना हुस्न पर ए'तिबार कर