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ग़ज़ल
ये तक्लीफ़-ए-क़दम-बोसी ये अंदाज़-ए-पज़ीराईहमारा मुंतज़िर था ग़ालिबन वीराना बरसों से
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
दिल की धड़कन बढ़ गई आँखों में आँसू आ गएग़ालिबन मेरी तरफ़ उन की नज़र होने गी
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
ग़ज़ल
उ'म्र भर सदमात-ए-हिज्राँ से रहा हूँ हम-कनारग़ालिबन सीने में पत्थर का जिगर रखता हूँ मैं
बेताब काल्प्वी
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
ग़ालिबन इसी उसूल को मद्द-ए-नज़र रखते हुए उ’र्फ़ी ने बहुत कम क़साएद लिखे और जो क़साएद
ज़माना
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा बुज़ुर्ग शाए’र के लिबास में - ख़्वाजा मा ’नी अजमेरी
दूसरे सवाल के जवाब में ब-तकल्लुफ़ ये कहना पड़ेगा कि मुल्ला मुई’न काशफ़ी के दीवान की
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
(वरक़11-12)एक-बार रुख़्सत होने से तीन दिन पहले सुब्ह की नमाज़ से क़ब्ल हज़रत मख़दूम शकर बार