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Sufinama

दिल में पिन्हाँ एक तूफ़ान-ए-शरर रखता हूँ मैं

बेताब काल्प्वी

दिल में पिन्हाँ एक तूफ़ान-ए-शरर रखता हूँ मैं

बेताब काल्प्वी

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    दिल में पिन्हाँ एक तूफ़ान-ए-शरर रखता हूँ मैं

    बिजलियों का अपनी आहों में असर रखता हूँ मैं

    सारी दुनिया से जुदा ज़ौक़-ए-नज़र रखता हूँ मैं

    या'नी ख़ुद हुस्न-ए-अज़ल को राहबर रखता हूँ मैं

    बे-ख़ुदी के साथ दिल में शान-ए-ख़ुद्दारी भी है

    बे-ख़बर रहते हुए अपनी ख़बर रखता हूँ मैं

    उ'म्र भर सदमात-ए-हिज्राँ से रहा हूँ हम-कनार

    ग़ालिबन सीने में पत्थर का जिगर रखता हूँ मैं

    क्या बताऊँ है कहाँ तक मेरी पर्वाज़-ए-ख़याल

    अ'र्श से भी कुछ परै अपनी नज़र रखता हूँ मैं

    इ'श्क़ की दौलत ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ हासिल है मुझे मुझे

    कोई कह सकता नहीं सत्ही नज़र रखता हूँ मैं

    एक आ'लम से जुदा है मेरा अंदाज़-ए-जुनूँ

    बारगाह-ए-दोस्त के ज़र्रों पे सर रखता हूँ मैं

    याद को उन की बना रखा है मैं ने रहनुमा

    अपने दिल के साथ शम्-ए’-रह-गुज़र रखता हूँ मैं

    चाँद के जल्वों से 'बेताब' गो महरूम हूँ

    अपने पहलू में निहाँ दाग़-ए-जिगर रखता हूँ मैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्किरा-ए-शो’रा-ए-उत्तर प्रदेश हिस्सा सोउम (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : इरफ़ान अ’ब्बासी

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