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ना'त-ओ-मनक़बत
मिरी 'शायान' बस इतनी गुज़ारिश है हवाओं सेमिरी आहें मिरा नौहा बराबर कर्बला पहुँचे
ख़्वाजा शायान हसन
ग़ज़ल
उस शोख़ से कोई मेरी सिफ़ारिश नहीं करताक़ासिद भी कुछ अहवाल-ए-गुज़ारिश नहीं करता
शाह तुराब अली क़लंदर
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ना'त-ओ-मनक़बत
'आसी की तेरे दर पे बस इतनी गुज़ारिश हैकर दीजो मुशर्रफ़ मुझ को दीदार-ए-मोहम्मद से
आ’सी गयावी
ना'त-ओ-मनक़बत
गुज़ारिश ये भी करना जब वो मेरा हाल-ए-दिल पूछेकि या शाह मदीना ज़िंदगी के दिन बुरे गुज़रे
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुझ पर निगाह-ए-लुत्फ़ हो मेरी गुज़ारिश भी सुनोहो जाऊँ हर ग़म से बरी पीरान-ए-साबिर कलियरी
सीमाब अकबराबादी
सलाम
हुनर सिल्लोडी
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
जब किसी बुज़ुर्ग से दुआ’ करानी होती तो फ़ातिहा के लिए इल्तिमास किया जाता था |वो
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
शुद नक़्श हमः जान मुमस्सलबड़ी मुश्किल से शहर की तरफ़ मुराजअ’त करने के लिए रज़ा-मंद हुए।थोड़े
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ हयात और ता’लीमात
बड़ौदा से आप अपने वालिद-ए-बुजु़र्ग-वार के मज़ार पर हाज़िरी देने के लिए दौलताबाद गए।यहाँ का गवर्नर
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
शाह अकबर दानापुरी और “हुनर-नामा”
शाह ‘अकबर’ दानापुरी की शाइ’री उनकी हुब्बुल-वतनी में डूबी हुई ख़्वाहिश का इज़हार है। आपने क़ौमी