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सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
हमरी सेजरिया हो रामा !गुलदस्ता ए वारसी (नज्र ग़रीब नवाज़ )
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह मोहसिन दानापुरी
का’बा में भी शराब पिए जा रहा हूँ मैं(रूहानी गुलदस्ता, सफ़हा 50)
रय्यान अबुलउलाई
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कलाम
पढ़ो 'साबिर' कोई ऐसी ग़ज़ल बज़्म-ए-सुख़न-दाँ मेंकि ऐसा कोई गुलदस्ता न हो गुलज़ार-ए-रिज़वाँ में
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर
ना'त-ओ-मनक़बत
शाह-ए-अबरार की अंजुमन और है क्या हसीं दौर हैबू-ए-गुलदस्ता-ए-पंजतन और है क्या अ'जब तूर है
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
ये गुलदस्ता हमारा छिप गया है 'रहमती' अब तोरहेगा याद-गार अपना पस-ए-मुर्दन भी हर घर में
कुँवर सुखराज बहादुर ‘रहमती’
ना'त-ओ-मनक़बत
नियाज़-ओ-नाला-ओ-फ़रियाद-ओ-अफ़्ग़ाँ आह-ओ-ज़ारी कोबना गुलदस्ता-ए-रंगीन मैं भी पहुँचूँगा मदीना में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ कावो इक गुलदस्ता है हम बे-ख़ुदों के ताक़-ए-निस्याँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
हिंदुस्तान में क़व्वाली सिर्फ़ संगीत नहीं है। क़व्वाली इंसान के भीतर एक संकरे मार्ग का निर्माण