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दकनी सूफ़ी काव्य
रियाज़ उल आरफ़ीन
ढूँढता था चश्मा का लेकर चराग़देक इब्राहीम कू की अज़ क़ज़ा
इसहाक़ बीजापुरी
दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा हज़रत मरिअम
दिस्या सख़्त मुश्किल मश्क दक़ीक़था पानी का वा इक चश्मा अमीक़
ग़रीब शाह
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साखी
।। अथ गुरू शिष्य निदान निर्णय का अंग।।
एक गुरू है आरसी, शिष चख अटके वार ।जन रज्जब चश्मा गुरू, काढ़ै अपने पार ।।
रज्जब
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
इलाही चश्म है या चश्मा-ए-ख़ूँबे-सर-ओ-पाई से उ’श्शाक़ को ख़तरा क्या है
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
चाहिए चश्मा-ए-जन्नत को अछूता पानीउनकी तक़दीर-ए-रसा पर है फ़रिश्तों को भी रश्क
सुमन मिश्रा
ना'त-ओ-मनक़बत
है मुझे ख़ाक-ए-मदीना चश्मा-ए-आब-ए-हयातख़िज़्र ख़ुश हों चश्मा-ए-आब-ए-बक़ा को देख कर
अमीर मीनाई
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
'हाफ़िज़ा' बाज़ नुमा क़िस्सः-ए-ख़ूनाबः-ए-चश्मकि दरीं चश्मा हमाँ आब-ए-रवानस्त कि बूद