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कलाम
कोई अजनबी-सा दयार था यही वक़्त होगा पहल गएसर-ए-रह-गुज़र वो नज़र मिली तो फ़ज़ा में फूल बिखर गए
अज्ञात
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सूफ़ी लेख
बाबा फ़रीद शकर गंज
जब सय्याह अ’स्र के वक़्त जाते हैं और आहिस्ता-आहिस्ता वही सूरज जिसकी तरफ़ आँख भर कर
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
ज़माना के हाथों इस दरवाज़ा का भी वही हश्र होता जो अंदर के महलों का हुआ