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ग़ज़ल
हिजाब-ए-ख़ास के पर्दे उठे हैं कैफ़-ओ-मस्ती मेंन जाने किस की हस्ती देखता हूँ अपनी हस्ती में
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
शैख़ मुख़तार अहमद
क़िता'
जुनून-ए-'आशिक़ी में अपना दामन चाक कर लेतेग़म-ए-कौन-ओ-मकाँ से अपने दिल को पाक कर लेते
फ़ना बुलंदशहरी
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फ़ारसी कलाम
जोश ज़द मस्ती व चश्म-ए-दिलबराँ मय-ख़ान: शुदमुश्त-ए-ख़ाक-ए-मय परस्ताँ चर्ख़ ज़द-ओ-पैमान: शुद
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
ग़ज़ल
दिया साक़ी ने अव्वल रोज़ वो पैमाना मस्ती मेंकि मैं ना-आश्ना पैकर हुआ दीवाना मस्ती में
नुशूर वाहिदी
कलाम
फ़स्ल-ए-गुल में रंग मस्ती का जमाना चाहिएउठ के मस्जिद से सू-ए-मय-ख़ाना जाना चाहिए