गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक-गरेबानों के
रोचक तथ्य
(شبستان اردو ڈائجسٹ۔ نئی دہلی فروی ۱۹۶۹ء)
गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक-गरेबानों के
शक्ल मा'शूक़ की अंदाज़ हैं दीवानों के
का'बा-ओ-दहर में होती है परस्तिश किस की
मय-परस्तों ये कोई नाम हैं मय-ख़ानों के
पर-ए-पर्वाज़ बने ख़ुद शरर-ए-शम्अ' कभी
शरर शम्अ' बने पर कभी प्रानों के
ज़िक्र किया अहल-ए-जुनूँ का जब आती है बहार
वो तो वो रंग बदल जाते हैं ज़िंदानों के
वुसअत-ए-ज़ात में गुम वहदत-ओ-कसरत 'रियाज़'
जो बयाबाँ हैं वो ज़र्रे हैं बयाबानों के
- पुस्तक : तज़्किरा शो'रा-ए-वारसिया (पृष्ठ 107)
- प्रकाशन : फ़ाइन बुक्स प्रिंटर्स (1993)
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