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राग आधारित पद
टोड़ी, चौताल- चुनरी प्यारी पचरंग पहिरैं सु पनियाँ गगरिया भरैं
चुनरी प्यारी पचरंग पहिरैं सु पनियाँ गगरिया भरैं,आवति है सु दोऊ हाथ चैंथी धरै।
तान तरंग
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-चुनरी(96) बाल नचे कपड़े फटे, मोती लिए उतार।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-चुनरी (96) बाल नचे कपड़े फटे, मोती लिए उतार।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
प्यारी के मुख म्याने खेल्या बसन्त
बसन्त बास चुन-चन के चुनरी बँधेजो उभर के लहरॉ सो आया बसन्त
कुली कुतुब शाह
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सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
चुनरी स्याम सतार नम मुँह ससि की उनहारि।नेह दबावतु नींद लौं निरखि निसा सी नारि।।326।।
बिहारी
सूफ़ी लेख
कबीर दास
नैहरवा में दाग लगाय आई चुनरीऔर रंगरेजवा के मरम न जाने नहिं मिले धोबिया कौन करे उजरी
ज़माना
राग आधारित पद
होली-काफी- करावें कौन बहाना गवन हमरा नगिचाना।
एक बोर दे दियो चुनरी में तासो पिय पहिचाना।।राह चलत सत गुरु मिले 'वहजन' उनका है नाम बखाना।
वहजन
शबद
मेरे गिरिधर-गोपाल दूसरो न कोई
चुनरी के किए टूक टूक ओढ़ लीन्ह लोईमोती मूंगे उतार बन माला पोई
मीराबाई
पद
कैसी मोहन बंसी वजाई
कुँवारी करे सिंगार सवारो सेज पे नाथ हूँ बैठीसारी हरी चुनरी पेहरी भर जीवन नैन अँगेठी