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ना'त-ओ-मनक़बत
मरक़द से फ़रिश्तों तुम चुप-चाप चले जाओछेड़ा जो मुझे तुम ने कह दूँगा मोहम्मद से
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
वज्द के आ'लम में हर ज़र्रे को रक़्साँ देखिएकिस ने छेड़ा साज़-ए-दिल पुर-नग़मा-ए-जाँ देखिए
हादी मछली शहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
ये है वस्फ़-ए-फ़ख़र-ए-आ’लम ये है शान-ए-मुस्तफ़ाईजहाँ उन का ज़िक्र छेड़ा वहीं झुम उठी ख़ुदाई
शैदा वारसी
कलाम
आज कुछ इस धुन में छेड़ा मैं ने 'माहिर' साज़-ए-इ’श्क़ज़र्रा-ज़र्रा काक-ए-हस्ती का ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गया
माहिरुल क़ादरी
कलाम
तमाम इ'ज़्ज़त है आप ही की ये छेड़ा पने गदा से कैसीन देखिए यूँ मिरा तमाशा हुज़ूर अब ठोकरें खिला के
कामिल शत्तारी
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
कामना के दानि परिताप सबको हरैं।। छत्रप्रकाश से विदित होता है कि अनवर खाँ नामक, दिल्ली का
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
राष्ट्रीय जीवन में सूरदास, श्री शान्ता कुमार
भक्ति की यह लहर दक्षिण से आयी थी और उत्तर भारत में उनकी अधिक आवश्यकता थी,