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सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
अर्थात् चर्ख़ा कातना और सीना-पिरोना न छोड़ना- इसे छोड़ बैठना अच्छी बात नहीं है, क्योंकि यह
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत सय्यिदना अ’ब्दुल्लाह बग़दादी - मैकश अकबराबादी
“इ’राक़ में सख़्त ताऊ’न फैल जाने की वजह से बग़दाद छोड़कर आप हिन्दुस्तान आए।”ये दोनों सबब
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
बीसलदेव रासो- शालिग्राम उपाध्याय
डा. गुप्त द्वारा संपादित मूल प्रति छंदसंख्या की दृष्टि से जितनी अधिक प्रामाणिक है, डा. अग्रवाल
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
बद्र-उल-हसन एमादी लिखते हैं कि-‘‘उनके सम्मान में फ़र्क़ आ गया, बुढ़ापा बुरी बला है, आफ़ियत की
रय्यान अबुलउलाई
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
ख़ोजा नसरुद्दीन एक बार में ही ढेर-सा खाना खा सकता था। एक बार में उसने तीन
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
यह अनुमान या वितर्के रागात्मिका वृत्ति से सर्वथा निर्लिप्त शुद्ध बुद्धि की क्रिया नहीं है। संचारी
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
हमारे इस अलबेले सूफ़ी का नाम अहमद फ़जलुल्लाह था जिन्हें साहित्य जगत ‘जमाली’ के नाम से
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
इसका उत्तर यह कि सभी लोग मायिक सामग्री रखते हों- ऐसा कोई नियम नहीं। ऐसे भी
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
पदमावत की लिपि तथा रचना-काल- श्रीचंद्रबली पांडेय, एम. ए., काशी
उपर्युक्त विवेचन से यह तो स्पष्ट ही हो गया होता कि जायसी की लिपि हिंदी थी
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
तसव़्वुफ-ए-इस्लाम - मैकश अकबराबादी
तसव्वुफ़ कुछ इस्लाम के साथ मख़्सूस और उसकी तन्हा ख़ुसूसियत नहीं है।अलबत्ता इस्लामी तसव्वुफ़ में ये