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पद
चैत- चैत निरजीवै न कोई, जीव जम को ग्रास है ।
चैत निरजीवै न कोई, जीव जम को ग्रास है ।मूढ़ निश्चय समुझ अन्धे, स्वप्न सो जग बास है ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
दोहा
जम जनि बौरा होई तू, कत घेरत माहि आन।
जम जनि बौरा होई तू, कत घेरत माहि आन।हौ तो तबहीं दे चुकी, प्रान नाथ को प्रान।।
सय्यद बर्क़तुल्लाह
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सालहा दिल-तलब-ए-जाम-ए-जम अज़ मा मी-कर्दआँ-चे ख़ुद दाश्त ज़े-बेगान: तमन्ना मी-कर्द
हाफ़िज़
कविता
संध्या- रात ने पाया विजय जम केतु यह फहरा रहा!
रात ने पाया विजय जम केतु यह फहरा रहा!या उसी के राग का है सिन्धु यह लहरा रहा।।
सय्यद अमीर अली मीर
बैत
मस्नद-ए-पीरी पे यूं जम कि ना बैठो तुम नसीर
मस्नद-ए-पीरी पे यूं जम कि ना बैठो तुम नसीरकल को उठ जाओगे ये सारा तमाशा छोड़कर
पीर नसीरुद्दीन नसीर
सूफ़ी लेख
फ़ारसी लिपि में हिंदी पुस्तकें- श्रीयुत भगवतदयाल वर्मा, एम. ए.
जम जम जीयो आतिश ख़ाँ सदा मस्त हती।।चैत
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
(4) उनकी चौरासी नहिं छूटै। काल जाल जम जोरा लूटै।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
देखै उरध अगाध निरंतर,हरष सोक नहिं जम कै त्रास।।2।।