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सालहा दिल-तलब-ए-जाम-ए-जम अज़ मा मी-कर्द

हाफ़िज़

सालहा दिल-तलब-ए-जाम-ए-जम अज़ मा मी-कर्द

हाफ़िज़

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    रोचक तथ्य

    अनुवाद: शंकर महेशवरी

    सालहा दिल-तलब-ए-जाम-ए-जम अज़ मा मी-कर्द

    आँ-चे ख़ुद दाश्त ज़े-बेगान: तमन्ना मी-कर्द

    वर्षों से अभिलाषा मन की ‘जम’ का प्याला पाने की

    दर-दर माँग रहा क्या पगले वह तो पास तुम्हारे है

    गौहरे कज़ सदफ़-ए-कौन-ओ-मकाँ बैरून अस्त

    तलब अज़ गुम-शुदगान-ए-लब-ए-दरिया मी-कर्द

    देश-काल की सीपी के जो बाहर है, उस मोती को

    तट पर बैठा चाह रहा तू उनसे, जो ख़ुद भरमे हैं

    मुश्किल-ए-ख़्वेश बर-ए-पीर-ए-मुगाँ बुर्दम दोश

    कू ब-ताईद-ए-नज़र हल्ल-ए-मोअ'म्मा मी-कर्द

    कल जब अपनी उलझन लेकर पीर-ए-मुग़ाँ के पास गया

    एक नज़र क्या देखा उसने, सुलझ गए सब उलझे तार

    दीदमश ख़ुर्रर्म-ओ-ख़ुश-दिल क़दह-ए-बाद: ब-दस्त

    व-अंदराँ आईन: सद-गूनः तमाशः मी-कर्द

    लिए हाथ में मधु का प्याला, मुख पर हँसी और उल्लास

    विविध रंग में परम-सत्य को देख रहा वह दर्पण में

    गुफ़्तम ईं जाम-ए-जहाँ-बीं ब-तू कै दाद हकीम

    गुफ़्त आँ रोज़ कि-ईं गुम्बद-ए-मीना मी-कर्द

    मैंने पूछा, ये सबदरसी प्याला तूने कब पाया?

    कहा देव ने, उस दिन, जिस दिन नील-गगन था रचा गया

    आँ हमः शो'बदः अक़्ल कि मी-कर्द आँ-जा

    सामरी पेश-ए-असा-ओ-यद-ए-बैज़ा मी-कर्द

    विफल सामरी के जादू सब जैसे मूसा के सम्मुख

    उसी तरह ये बुद्धि यहाँ पर अपना कौशल दिखलाती

    फैज़-ए-रूहुल-क़ुदुस अर बाज़ मदद फ़र्मायद

    दीगराँ हम ब-कुनद आँ-चे मसीहा मी-कर्द

    एक बार उस कारुणीक की कृपा दृष्टि जो मिल जाए

    तो फिर कोई भी कर लेगा ‘इसा’ जो कर गए यहाँ

    गुफ़्तमश ज़ुलफ़ चु ज़ंजीर बुताँ अज़ पय-ए-चीस्त

    गुफ़्त 'हाफ़िज़' गिल:ई अज़ दिल-ए-शैदा मी-कर्द

    मैंने पूछा, बता भला ये केशों की लड़ियाँ क्या हैं?

    ये तो उपालंभ है ‘हाफ़िज़’ अमानिशा के नाम यहाँ

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