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नज़्म
।। शरद ऋतु ।।
दिन जल्दी-जल्दी चलता हो तब देख बहारें जाड़े की।पाला भी बर्फ़ पिघलता हो तब देख बहारें जाड़े की।
नज़ीर अकबराबादी
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
आड़े दै आले बसन जाड़े हूं की राति।साहसु ककै सनेह-बस सखी सबै ढिग जाति।।283।।
बिहारी
सलाम
सलाम उस पर जो उम्मत के लिए रातों को रोता थासलाम उस पर जो फ़र्श-ए-ख़ाक पर जाड़े में सोता था
माहिरुल क़ादरी
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सूफ़ी लेख
मंसूर हल्लाज
हज़रत मंसूर हमेशा से बड़े आ’बिद,ज़ाहिद शख़्स थे। एक मा’मूल उनका ये था कि दिन-रात में
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
हज़रत शैख़ हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैह ने उस क़ौल की ताईद की है कि मलामत आ’शिक़ों के
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी कहानी
एक सूफ़ी का अपना ख़च्चर ख़ादिम-ए-ख़ानक़ाह के हवाले करना और ख़ुद बे-फ़िक्र हो जाना - दफ़्तर-ए-दोम
सूफ़ी ने कहा कि उस के थान के कंकर पत्थर और कूड़ा करकट झाड़ देना और
रूमी
सूफ़ी कहानी
बादशाह का एक शाए’र को इनआ’म देना और वज़ीर की दर-अंदाज़ी
वज़ीर ने अ’र्ज़ की कि जहाँपनाह सल्तनत में बहुत से ज़रूरी अख़राजात मुल्तवी पड़े हैं।इतना बड़ा