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कलाम
मोहम्मद अशरफ़
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ग़ज़ल
कोई आज़ुर्दा करता है सजन अपने को हे ज़ालिमकि दौलत-ख़्वाह अपना 'मज़हर' अपना 'जान-ए-जाँ' अपना
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
तुझी को जान-ए-जाँ दैर-ओ-हरम में जल्वा-गर देखातू ही हर जा नज़र आया जहाँ देखा जिधर देखा
औघट शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
इक क़रार-ए-जाँ सब जान-ए-क़रार-ए-फ़ातिमालुट गया है दश्त में बाग़-ए-बहार-ए-फ़ातिमा
इज़हार जबलपुरी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी कलाम
ऐ ब-तू ज़िंद: जिस्म-ओ-जाँ मूनिस-ए-जान-ए-कीस्तीशेफ़्त-ए-तू इंस-ओ-जाँ ऊंस-ए-रवान-ए-कीस्ती
फ़ख़रुद्दीन इराक़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ जान-ए-मा ऐ जान-ए-मा ऐ कुफ़्र-ओ-ईमान-ए-माख़्वाहम कि ईं ख़र-मोहरः रा गौहर कुनी दर कान-ए-मा
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
मैं निकलने उसे दूँगा मिरा नाम 'अकबर' हैजान-ए-जाँ दिल में मिरे दर्द है पिन्हाँ तेरा
शाह अकबर दानापूरी
ना'त-ओ-मनक़बत
जान-ए-जान-ए-मुस्तफ़ा-ओ-मुर्तज़ा आने को हैसय्यदा की गोद में इक मह-लक़ा आने को है