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सूफ़ी लेख
हज़रत मीराँ जी शम्सुल-उ’श्शाक़
उर्दू ज़बान की सर-परस्ती सब से ज़ियादा सूफ़िया ने की है।इसलिए कि उनका राब्ता अ’वाम और
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की उ’म्र अभी 12-13 साल की थी और बदायूँ में मौलाना अ’लाउद्दीन उसूली
निसार अहमद फ़ारूक़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
इम्तिहाँ देता है रन में जाँ-निसार-ए-फ़ातिमादेखता है अर्श से वो किर्दगार फ़ातिमा
महमूद अहमद रब्बानी
ग़ज़ल
ये जो उस शोख़ पे करता है 'बयाँ' जान निसारख़ब्त है इ'श्क़ है सौदा है वफ़ा है क्या है
एहसनुल्लाह ख़ाँ बयान
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ जान-ए-मा ऐ जान-ए-मा ऐ कुफ़्र-ओ-ईमान-ए-माख़्वाहम कि ईं ख़र-मोहरः रा गौहर कुनी दर कान-ए-मा
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
जान-ए-जान-ए-मुस्तफ़ा-ओ-मुर्तज़ा आने को हैसय्यदा की गोद में इक मह-लक़ा आने को है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
बैत
दो जहाँ की मुस्कुराहट तेरे ग़म पे हो निसार
दो जहाँ की मुस्कुराहट तेरे ग़म पे हो निसारतिरा ग़म मिरा तबस्सुम मिरा फ़िक्र-ओ-इंकिसार