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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ चारा-ए-हर-मुब्तला हज़रत सिराज-उस-सालिकीनमुश्किल-कुशा मुश्किल-कुशा हज़रत सिराज-उस-सालिकीन
मयकश अकबराबादी
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बैत
गर अज़ दोस्त चश्मत बर एहसान-ए-ऊस्त
गर अज़ दोस्त चश्मत बर एहसान-ए-ऊस्ततू दर बंद-ए-ख़्वीशी न दर बंद-ए-दोस्त
सादी शीराज़ी
ग़ज़ल
वक़्त-ए-आख़िर उन को मेरी याद गर आई तो क्याबाद मर जाने के मैं ने ज़िंदगी पाई तो क्या
ख़ुसरौ काकोरवी
कलाम
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाएमंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए