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ना'त-ओ-मनक़बत
अमीर बख़्श साबरी
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ग़ज़ल
जाओ जहाँ है साक़ी-ए-सरमस्त-ए-क़दह-नोशक्यूँ आए हुए झुक-झुक मिरी आँखों में ख़ुमारो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-तौबः की तक़रीब में झुक झुक के मिलती हैंकभी पैमानः शीश: से कभी शीशे से पैमानः
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हर क़दम कैफ़ निगाह-ए-मस्त से झुक झुक गयासीख लीं पा-ए-मिज्ज़ा से लग़्ज़िश-ए-मस्ताना हम
अख़तर नगीनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
क़दम चूमे हैं दुनिया के शहंशाहों ने झुक-झुक करबंधी देखी है जिस के सर तेरी दस्तार या साबिर
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ग़ज़ल
कान से तेरे झुक झुक कर ये लेता है बोसे आरिज़ केया तो हमारे टुकड़े कर या तोड़ ये बाला फूलों का