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सूफ़ी उद्धरण
एक इन्सान ने दूसरे से पूछा ''आपने ज़िंदगी में पहला झूट कब बोला''? दूसरे ने जवाब दिया ''जिस दिन मैंने ये ऐ’लान किया कि मैं हमेशा सच्च बोलता हूँ'।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी कहावत
तब लग झूट न बोलिए, जब लग पार बसाय
तब लग झूट न बोलिए, जब लग पार बसायजब तक वश चले झूठ नहीं बोलना चाहिए। विवशता की बात दूसरी है
वाचिक परंपरा
दकनी सूफ़ी काव्य
जेकूमनामा
देखूँगा तुम्हारी करामात जो हैके है साच या झूट अलामत अहै
फ़ज़ल बिन मोहम्मद अमीन
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राग आधारित पद
गई यारी छूट होय गई बालम
सब बतियाँ तोरी हो गईं झूटदीनौ के साथ परानों बीती
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
सूफ़ी लेख
दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
अव़्वलः तौबा गुनाहों को खा जाती है।दोउमः झूट रिज़्क़ को चट कर जाती है।
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
गूजरी सूफ़ी काव्य
'बाजन' साच खलें वो न मिले झूटत लेई छुपाँ
'बाजन' साच खलें वो न मिले झूटत लेई छुपाँसोच अखें जे चले झूट छोड़ सब जाँ