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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
दकनी सूफ़ी काव्य
ख़जान ए इबादत
फ़स्ल भई कहूँ दरमियाने क़बरदफ़न क्यों जो करना सो ओ बेखबर
शाह मुहम्मद हैदराबादी
दोहरा
ज़ुहद इबादत चाहे देखे
ज़ुहद इबादत चाहे देखे, नहीं हरगिज़ ध्यान न करदा ।शाह मनसूर चढ़ाया सूली, अते यूसफ़ कीतो सू बरदा ।
हाशिम शाह
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ग़ज़ल
जमाल-ए-नूर-ए-रहमाँ पर ग़ज़ल कहना 'इबादत हैवो ख़िल्क़त के निगहबाँ पर ग़ज़ल कहना 'इबादत है
महमूद अहमद रब्बानी
सूफ़ी उद्धरण
साधक को चाहिए कि हमेशा ख़ुदा की इबादत करता रहे, क्योंकि जो जितनी इबादत करेगा, उतनी जल्दी अपने मक़सद को पहुँचेगा।
ख़्वाजा सुलैमान तौंसवी
सूफ़ी उद्धरण
ज़िंदगी का मक़सद ख़ुदा की इबादत है, यही दुनिया की कमाई है।
ज़िंदगी का मक़सद ख़ुदा की इबादत है, यही दुनिया की कमाई है।
सय्यदना अमीर अबुलउला
सूफ़ी उद्धरण
दिल की सफ़ाई बग़ैर इबादत के हासिल नहीं होती और ख़ुदा का नूर चेहरे पर बिना दिल की सफ़ाई के नहीं दिखता।
ग़ौस अली शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
’इबादत रब की कर बंदे रियाज़त रब की कर बंदेहमेशा ख़ौफ़ खा उस का हमेशा उस से डर बंदे
रमज़ान हैदर फ़िरदौसी
ग़ज़ल
रिंदों के लिए मय-ख़ाने की हर रस्म 'इबादत होती हैदिलबर को बिठा कर पेश-ए-नज़र चेहरे की तिलावत होती है
फ़क़ीर क़ादरी
सूफ़ी उद्धरण
सूफ़ी वह नहीं, जो चिल्ला खींचे, अकेले में इबादत करे, बल्कि वह है, जो ख़ुद को मिटा दे।
सूफ़ी वह नहीं, जो चिल्ला खींचे, अकेले में इबादत करे, बल्कि वह है, जो ख़ुद को मिटा दे।