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ग़ज़ल
ऐ क़िब्ला-ए-हाजात दु'आ 'इश्क़' की सुन लेआया है तिरे पास तलबगार-ए-मोहब्बत
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ना'त-ओ-मनक़बत
उस शख़्स को दुनिया का कोई ग़म नहीं होतावो शख़्स जो रहता है तलबगार-ए-मदीना
वासिफ़ अली वासिफ़
नज़्म
सम्त-ए-काशी से चला जानिब-ए-मथुरा बादल
आशिक़-ए-जल्व: तलबगार कहीं चश्म-ए-क़बूलनाज़-ए-महबूब के पर्दे में कहीं हुस्न-ए-अमल
मोहसिन काकोरवी
सूफ़ी लेख
मसनवी की कहानियाँ -5
इसीलिए दुनिया के बुज़ुर्गों ने कहा है कि ”ज़बान की हिफ़ाज़त इन्सान की राहत है”। हदीस