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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
बादशाह का एक दरख़्त की तलाश करना कि जो उस का मेवा खाए वो ना मरे- दफ़्तर-ए-दोउम
एक अ’क़्ल-मंद ने क़िस्से के तौर पर बयान किया कि हिन्दोस्तान में एक दरख़्त है जो
रूमी
बैत
जबीन-ए-शौक़ उसी को तलाश करती है
जबीन-ए-शौक़ उसी को तलाश करती है'क़मर' दयार है जो हर दयार से बाला
क़मर वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुन ऐ बाद-ए-सबा तु जानिब-ए-तैबः अगर गुज़रेतू जा कर थामना बाब-ए-हरीम-ए-ख़ास के पर्दे
मुज़्तर ख़ैराबादी
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ना'त-ओ-मनक़बत
सुन ऐ बाद-ए-सबा तू जानिब-ए-तैबा अगर गुज़रेतो जा कर थामना बाब-ए-हरीम-ए-ख़ास के पर्दे
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मिरी सम्त से उसे ऐ सबा ये पयाम-ए-आख़िर-ए-ग़म सुनाअभी देखना हो तो देख जा कि ख़िज़ाँ है अपनी बहार पर
जिगर मुरादाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
ये दे देना ख़बर बाद-ए-सबा अजमेर वाले कोकि करता याद है इक मुब्तला अजमेर वाले को
शाह मस'ऊदुल हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ बाद-ए-सबा कमली वाले से जा के कहियो पैग़ाम मिराक़ब्ज़े से उम्मत बेचारी के दीं भी गया दुनिया भी गई