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इशक फ़िराक बेतरस सिपाही मगर पए हर वेले
सबर तहम्मुल करन ना दिन्दे ज़ालिम बुरे मरेलेतुध बिन ऐवें जान मुहम्मद ज्युं दीवा बिन तेले
मियां मोहम्मद बख़्श
सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
बरा-ए-हाजत-ए-दुनिया तमा’ ब-ख़ल्लक़ न-बुर्दमकि तंग-चशम तहम्मुल कुनद अज़ाब-ए-महीं रा
एजाज़ हुसैन ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
हया-ओ-सब्र-ओ-तहम्मुल के ख़ुश-नुमा पैकरजमाल-ए-हैदरी सीरत-ए-हुसैन ज़िंदाबाद
तुफ़ैल अहमद मिसबाही
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ग़ज़ल
क्या ख़बर 'सीमाब' कब घबरा के दे दे अपनी जानज़ब्त गो अब तक तहम्मुल-कोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
कलाम
नहीं जिस में तहम्मुल मुश्किलात-ए-राह-ए-मंज़िल कावो पछताएगा ऐ 'सीमाब' मेरा हम-सफ़र हो कर
सीमाब अकबराबादी
कलाम
'असद' ऐ बे-तहम्मुल अरबदा बे-जा है नासेह सेकि आख़िर बे-कसों का ज़ोर चलता है गरेबाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ना'त-ओ-मनक़बत
काह हो कर कोह-ए-ग़म सर पर उठा लेते हैं येये तहम्मुल है कहीं इंसाँ की ताक़त से अलग
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
सितम पर नाज़ है उन को मुझे ज़ब्त-ओ-तहम्मुल परजफाओं में वो यकता मैं वफ़ादारी में कामिल हूँ
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
तहम्मुल की मिरे क्या दाद तुम अब भी नहीं दोगेकि जोश-ए-ज़ब्त से अश्क-ए-रवाँ तक बात आ पहुँची
अब्दुल मन्नान तरज़ी
कलाम
मिरी बे-सब्रियों की बात में सब से वो कहता हैतहम्मुल मुझ से भी तो हाल सुन कर हो नहीं सकता