आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ताव"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "ताव"
ग़ज़ल
कभी तुम साफ़ करते हो मिरे दिल की कुदूरत कूँकभी तुम बे-सबब तेवरी चढ़ा कर ताव करते हो
सिराज औरंगाबादी
अरिल्ल
आज सु नहीं कालि कहत हूँ तुझ कूँ
देखत अपनी दृष्टि ख़ता क्यूँ खात हैपरि हाँ 'बाजीद' लोहा को सो ताव चल्यौ यूँ जात है
वाजिद जी दादूपंथी
अन्य परिणाम "ताव"
ग़ज़ल
दे ताव न अब इतना कर आँच ज़रा हल्कीतेज़ी पे है मय साक़ी अड़ जाए न मय-ख़ाना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
शबद
अइयालो अपरंपर बाणी म्हे जपां न जाया जीऊं
जपां तो एक निरालंभ शंभु जिहिं के माय न पीउँन तन रक्तूं न तन धातू न तन ताव न सीऊँ
जम्भेश्वर
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
अभिमान विशेष रूप से कष्टदायक सिद्ध होता है। अभिमानी व्यक्ति इस संसार में ऐंठकर चलता है,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी कहानी
एक शैख़ी ख़ोरे का होंट और मूछों को चर्बी से चिकना करना- दफ़्तर-ए-सेउम
सच्चाई और जोश औलिया का शिआ'र है इस के मुक़ाबिल दग़ाबाज़ों की ढाल बे-शर्मी है। मख़्लूक़-ए-ख़ुदा