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कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
तीर-ए-नज़र वो दिल पे खाए मन का हाल न पूछो हायनस नस में इक आग लगी है प्रेम की अग्नी कौन बुझाए
अब्दुल हादी काविश
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सूफ़ी लेख
कलाम-ए-‘हाफ़िज़’ और फ़ाल - मौलाना मोहम्मद मियाँ क़मर देहलवी
ख़ुर्दःअम तीर-ए-नज़र बादः ब-देह ता-सर-मस्तदस्त दर बन्द-ए-कमर तर्कश-ए-जूज़ा फ़कुनम
सूफ़ीनामा आर्काइव
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
सर चढ़ा कर मुझे नज़रों से गिराते क्यों होआ’शिक़ -ए-चश्म हूँ इक तीर-ए-नज़र काफ़ी है
सुमन मिश्रा
कलाम
'साजिद' नज़र जो आए हम ये क्या किया चश्म-ए-यार नेतीर-ए-नज़र चला दिया अपना शिकार देख कर
शब्बीर साजिद मेहरवी
कलाम
न बे-दर्दी है जाओ नीम-बिस्मिल छोड़ कर ज़ालिमतिरे क़ुर्बान हाँ इक और भी तीर-ए-नज़र अपना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
ये जो लगा है तीर मुझे ऐ कमान-ए-इश्क़महशर में देखियो यही होगा निशान-ए-इश्क़