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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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ग़ज़ल
ये जो लगा है तीर मुझे ऐ कमान-ए-इश्क़महशर में देखियो यही होगा निशान-ए-इश्क़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
सूफ़ी कहावत
चराग़-ए- के ऊ ख़ानः रौशन कुनद बरूख़त उफ़्ताद कार-ए-दुश्मन कुनद
वो चिराग जो घरों को रोशनी देता है, अगर वह किसी के कपड़ों पर गिरे, तो दुश्मन की तरह काम करेगा।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी कलाम
शहीद-ए-तीर-ए-आँ तुर्कम कि अज़ अबरू कमाँ दारदख़दंग अज़ शुस्त-ए-आँ-ख़ुर्दम कि अज़ मिज़्गाँ सिनाँ दारद
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-रौ ब-कार-ए-ख़ुद ऐ वाइ'ज़ ईं चे फ़रियाद अस्तमरा फ़ितादः दिल अज़ कफ़ तुरा चे उफ़्ताद अस्त
हाफ़िज़
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
तीर-ए-नज़र वो दिल पे खाए मन का हाल न पूछो हायनस नस में इक आग लगी है प्रेम की अग्नी कौन बुझाए