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शे'र
ये कह कर ख़ाना-ए-तुर्बत से हम मय-कश निकल भागेवो घर क्या ख़ाक पत्थर है जहाँ शीशे नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
न घबराना दिल-ए-महजूर तारीकी से तुर्बत कीअरे नादाँ हक़ीक़त में वही है रात वसलत की
ख़्वाजा आसिफ़ हुसैन
गूजरी सूफ़ी काव्य
ज़ुलेख़ा का विलाप (यूसुफ़ की मौत पर)
मैं अन्दर बैठकर तुर्बत चुनातीक़यामत लग रेती उस गोर बिच हूँ
अमीन गुजराती
सूफ़ी लेख
Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
फिताद आँ नाज़नीं दर तुर्बत-ए-अल-हक़ब-यक मादन दो गौहर गश्त पिन्हाँ
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहार के प्रसिद्ध सूफ़ी शाइर – शाह अकबर दानापुरी
आके तुर्बत पे मेरी ग़ैर को याद न करख़ाक होने पे तो मिट्टी मेरी बर्बाद न कर
सुमन मिश्रा
ग़ज़ल
तुम अपने दर पे देते हो इजाज़त दफ़न-ए-दुश्मन कीमिरी तुर्बत कहाँ होगी मिरा मर्क़द कहाँ होगा
क़मर जलालवी
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
‘मुज़्तर’ का ये तड़पना बा’द-ए-फ़ना तो कम होतुर्बत पे आ के जम जा ऐ नक़्श-ए-पा-ए-वारिस