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कलाम
हम नहीफ़ों से गुरेज़ आप को दरकार नहींपहलू-ए-गुल में हुआ करते हैं क्या ख़ार नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
दकनी सूफ़ी काव्य
जेकूमनामा
जिते किश्तियॉ तुज को दरकार हैउते आज मुज पास तैयार है
फ़ज़ल बिन मोहम्मद अमीन
शबद
इश्क असां नाल केही कीती, लोक मरेंदे ताअने ।
इश्क तेरा दरकार असानूं, हर वेले हर हीले ।पाक रसूल मुहम्मद सरवर, मेरे ख़ास वसीले ।
बुल्ले शाह
सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
ख़िर्क़: रा आतिशज़द-ओ-दरकार शुद ।।शेख़ ने दीक्षा ले ली और अपनी गुदड़ी को आग में जला दिया।