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इश्क़ में ऐ कोहकन क्या ज़ख़्म-ए-सर दरकार था

आसी गाज़ीपुरी

इश्क़ में ऐ कोहकन क्या ज़ख़्म-ए-सर दरकार था

आसी गाज़ीपुरी

MORE BYआसी गाज़ीपुरी

    इश्क़ में कोहकन क्या ज़ख़्म-ए-सर दरकार था

    ज़ख़्म-ए-दिल दरकार था ज़ख़्म-ए-जिगर दरकार था

    उड़ के जाना बाम-ए-जानाँ तक मगर दरकार था

    मुर्ग़-ए-दिल को बाज़ू-ए-मुर्ग़-ए-नज़र दरकार था

    सोज़-ए-दिल से दस्त-ए-मातम पंजः-ए-ख़ूँ किस लिए

    हाँ शब-ए-ग़म चाक-दामान-ए-सहर दरकार था

    पाक-बाज़ी अपनी पैग़ाम-ए-तलब थी इश्क़ में

    धो के दाग़-ए-तोहमत-ए-हस्ती सफ़र दरकार था

    क़र्ज़ की कुछ गुफ़्तुगू आशिक़ से करते थे रक़ीब

    नाले तो कुछ कम थे शायद असर दरकार था

    अहल थे महरूमी-ए-दीदार के तुम कलीम

    मैं अज़ल का बे-जिगर मुझ को जिगर दरकार था

    क्या शराब-ए-हुस्न-ए-साक़ी जाँ-फ़िज़ा थी वाह-वा

    मय-गुसारो सागर-ए-ज़ौक़-ए-नज़र दरकार था

    चाक-हा-ए-दिल के टाँके इतनी बे-रहमी के साथ

    दर्द-ए-दिल तुझ को भी कुछ चारः-गर दरकार था

    मुझ से बे-मिक़दार का दिल और जल्वः आप का

    सच है ख़ुर्शीद हर ज़र्रे में घर दरकार था

    दाग़-ए-सोजाँ छोड़ कर आशिक़ ने ली राह-ए-अदम

    पिसरो तुम को चराग़-ए-रहगुज़र दरकार था

    दाग़ अपना दे के 'आसी' ने ली जो राह-ए-अदम

    पिसरो तुम को चराग़-ए-रहगुज़र दरकार था

    लज़्ज़त-ए-आज़ार 'आसी' के समझने के लिए

    दर्द-ए-दिल तुझ को भी कुछ चारः-गर दरकार था

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