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'इल्म-उल-यक़ीन के कैसे दरीचेअल्लाह ऊपर सज्दा है नीचे
डूबता है आ के सूरज उन के पासवो दरीचे मेरे दिल को भा गए
मिली तो है मिरी तन्हाइयों को आज़ादीजुड़ी हुई हैं कुछ आँखें मगर दरीचे में
तिरे दरीचे में सूरज की सुब्ह होने लगीतिरी गली में सितारे भी शाम करने लगे
कैसे किसी के दिल में समाय कोई कि अबदिल के दरीचे सब पे कहाँ खोलते हैं
दरीचेدریچے
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इ'रफ़ाँ के दरीचे ऐसे खिले हर पर्दा उठा हर जहल मिटाहर सू नज़र आए जल्वे तिरे हर सम्त नया पैग़ाम मिला
बूढ़ा अकेला रह गया। वह बिल्कुल भौचक्का था। बहुत देर तक वह सोच और परेशानी में
Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25
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