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हामी दी अख़तर बुर्ज शरफ़पीर-ए-हुदा गौहर-ए-दर्ज शरफ़
” इन हज़रात के मुख़्तसर से हालात अकमलुत्तारीख़ जिल्द-ए-अव्वल, तोहफ़ा-ए-फ़ैज़ और तवाबेउ’ल-अनवार में कम-ओ-बेश एक ही इ’बारत के साथ दर्ज हैं “इन इक़्तिबासात में कहीं ये दर्ज नहीं है कि ब-हवाला-ए-तोहफ़ा-ए-फ़ैज़ मुअल्लफ़ा मौलवी अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी, अ’रबी शाइ’री में मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी के शागिर्द हैं।
दर दर्ज नजफ़ महर बज्र शरफ़रंग रूमी शहादत पे लाखों सलाम
(18/ रबीउ’ल-अव्वल सन 718 हिज्री मुताबिक़ मई सन 1318 ई’स्वी) इस क़लील मा’लूमात में ‘ख़ैरुल-मजालिस’ ने जो इज़ाफ़ा किया है वो दर्ज ज़ैल हैः
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“शाह इस्माई’ल-ओ-अ’ज़ीज़-ओ-अमीर” (स.40)इसी सिलसिले में हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन की तहरीर ”मक्तूबात-ए-उ’लमा-ओ-कलाम-ए-अहल-ए-सफ़ा” में भी दर्ज है :
हज़रत हसन जान का हल्क़ा ए बैअत ओ ख़िलाफ़त भी काफ़ी वसीअ ओ अरीज़ रहा है।यहाँ ख़ुलफ़ा के चंद नाम दर्ज किए जाते हैं।(1) हज़रत शाह महमूदुल-हसन अबुल उलाई मुतवफ़्फ़ा 1369 हिज्री (साहिब-ज़ादा व जानशीन)
अफ़सर ने पूछा, "तुम कहां से आए हो और तुम्हारे आने का मक़्सद क्या है?"मुहर्रिर ने सींग में भरी स्याही में नेज़े की क़लम डुबोयी और मोटे रजिस्टर पर ख़ोजा नसरुद्दीन का बयान दर्ज करने को तैयार हो गया।
इन तमाम किताबों में आपके फ़ज़ाइल और करामात को बेहतरीन अंदाज़ में दर्ज किया गया है। साथ ही, सिलसिला-तुल-आली के एक सूफ़ी ने आपके फ़ज़्ल-ओ-करम को फ़ारसी शाइरी में बड़े ख़ुलूस से बयान किया है।खानदानी ज़िंदगी :
(नोट)वो वक़्त जिसमें रात और दिन मिलते हैं और उस वक़्त को न दिन कह सकते हैं न रात। ऐसे वक़्त की जद्वल भी अ’लाहिदा है जो रात और दिन की आठों जद्वलों के बा’द दर्ज की गई है।
“आप हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन महमूद चराग़ देहलवी के भाँजे-ओ-ख़लीफ़ा और ख़ादिम हैं।आपका ज़िक्र शैख़ की मज्लिस और मल्फ़ूज़ात में दर्ज है”।मौलाना दाऊद मुसन्निफ़-ए-“चन्दायन” आपके मुरीद हैं और उन्होंने इस किताब के आग़ाज़ में आपकी ता’रीफ़ की है।
कबीर की शाइ’री सारे हिंदुस्तान में मश्हूर है, आप ने बेहतर से बेहतर ख़्याल का नक़्शा खींचा है, कोई मिस्रअ’ नहीं जो नसीहत-आमीज़ न हो, यहाँ आप के कलाम का मुख़्तसर इक़्तिबास दर्ज किया जाता है।लूट सके तो लूट ले सत्य नाम की लूट
तहज़ीब की तश्कील में अपने कलाम के अ’लावा ख़ुसरो ने और कई ज़रिआ’ से हिस्सा लिया है।मौसीक़ी को उन्होंने आ’म फ़हम बनाया और इसमें कई तरह के तजरबे किए।उनके ईजाद कर्दा राग दर्ज ज़ैल हैं।मजीरः ग़ार और एक फ़ारसी राग से मुरक्कब है।
तसानीफ़ः-हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी की तसानीफ़ में लमआ’त के अ’लावा एक मस्नवी और एक दीवान भी है।मस्नवी का नाम ब्रिटिश म्यूज़ियम के फ़ारसी मख़तूतात की फ़िहरिस्त में उ’श्शाक़-नामा दर्ज है।मय-ख़ाना में मस्नवी का नाम मरक़ूम नहीं है लेकिन उसका ज़िक्र इन अल्फ़ाज़ में हैः-
वफ़ातः-हज़रत सदरुद्दीन का विसाल मुल्तान में 3 माह-ए-ज़िल्हिज्जा को ज़ुहर-ओ-अ’स्र के दर्मियान हुआ।तारीख़-ए-फ़रिश्ता में साल-ए-वफ़ात सन 776 हिज्री है, जो ग़लत मा’लूम होता है। सफ़ीनतुल-औलिया, और मिर्क़ातुल-असरार में सन 684 हिज्री दर्ज है। सफ़ीनतुल-औलिया के मुसन्निफ़ का बयान है कि
ऐ अर्जुन दिल को शुग़्ल की मदद से यक्सू कर के आ’ला और हैरत-अफ़्ज़ा ज़ात का तसव्वुर करने से पहले विसाल हासिल कर सकता है।मज़मून की तवालत को मद्द-ए-नज़र रखते हुए बक़िया अबवाब के बयानात का सिर्फ़ ख़ुलासा दर्ज किया जता है जिससे पूरी किताब पर रौशनी पड़ जाएगी।
“ख़याबान-ए-इ’र्फ़ान” के नाम से फ़ारसी रुबाइ’यात का एक मज्मूआ’ हैदराबाद से शाए’ हुआ है और उसमें भी हज़रत ख़्वाजा बुज़ुर्ग के इस्म-ए-गिरामी के साथ निस्बत करते हुए मुंदर्जा बाला दोनों रुबाइ’यात की नक़्ल के अ’लावा ये क़ितआ’ भी दर्ज है।सैल रा ना’रः-ए-अज़ आँस्त कि अज़ बह्र जुदास्त
जूद-ए-शह-ए-ज़ैल में हो दर्ज कि जिब्रील कहींकोई शाइ'र ये गदा है जो सदा देता है
मेरा धड़ सूली पर लटका हुआ है रियाज़त-ए-शाक्क़ा के सबब तन पिंजरा बन गया है। कव्वे तलवों को नोच रहे हैं लेकिन ख़ुदा अब भी नहीं मिला।(क्या कहने हैं इस क़िस्मत के !ये दोहा गुरू-ग्रंथ साहिब में दर्ज एक श्लोक से मिलता-जुलता है। उस का शुमार वहाँ नव्वे है ।वो श्लोक यूँ है:
8۔प्रोफ़ेसर ब्राउन (E.G.Browen) सन 599 हिज्रीइन सब में जर्मनी के मुस्तश्रिक़ बाख़र ने निज़ामी की मस्नवियात के बा’ज़ अशआ’र की बिना पर उनकी तारीख़-ए-वफ़ात से मुतअल्लिक़ एक नज़रिया क़ाइम किया है, जिसकी अक्सर मुस्तश्रिक़ीन ने ताईद की है, ये नज़रिया अपनी तफ़सीलात के ए’तबार से क़ाबिल-ए-ग़ौर है। और हम उसका ख़ुलासा ज़ैल में दर्ज करते हैं
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