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ना'त-ओ-मनक़बत
किस दर्जा बुलंदी पे क़िस्मत का सितारा हैदामन मेरे हाथों में ख़्वाजा जी तुम्हारा है
फ़ना बुलंदशहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
ये मंसब और ये दर्जा निज़ामुद्दीन चिश्ती काहै 'अर्श-ओ-फ़र्श पर चर्चा निज़ामुद्दीन चिश्ती का
नूरुल हसन नूर
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ना'त-ओ-मनक़बत
सिद्क़-ओ-सफ़ा में यकता है दर्जा हुसैन काइस्लाम की बक़ा भी है सदक़ा हुसैन का
वजाहत हुसैन दाइम
सूफ़ी उद्धरण
सबसे ज़्यादा बद-क़िस्मत इन्सान वो है जो हद दर्जा ग़रीब हो और ख़ुदा पर यक़ीन न रखता हो।
सबसे ज़्यादा बद-क़िस्मत इन्सान वो है जो हद दर्जा ग़रीब हो और ख़ुदा पर यक़ीन न रखता हो।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी उद्धरण
इंकार इक़रार की एक हालत है, उसका एक दर्जा है, इंकार को इक़रार तक पहुंचाना, , बुद्धिमानी का काम है, उसी तरह कुफ़्र को इस्लाम तक लाना, ईमान वाले की ख़्वाहिश होना चाहिए।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी लेख
हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
इस जगह हज़रत मख़दूमुल-मुल्क ने ब-तौर-ए-इंतिबाह लिखा है कि तौहीद-ए-वुजूदी इ’ल्म के दर्जा में हो या
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
मैकश अकबराबादी
इस दर्जा दुश्मनी तो मुक़द्दर की बात हैवर्ना वो एक उ’म्र मिरे राज़-दाँ रहे
शशि टंडन
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में गागर
मुझ से उठती नहीं इस दर्जा है भारी गागरसर पे तू रख दे मेरे रहमत-ए-बारी गागर
उमैर हुसामी
ग़ज़ल
दिल में इस दर्जा बढ़ी याद-ए-ख़ुदा आज की रातदोनों आलम के मैं ग़म भूल गया आज की रात