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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
ये मंसब और ये दर्जा निज़ामुद्दीन चिश्ती काहै 'अर्श-ओ-फ़र्श पर चर्चा निज़ामुद्दीन चिश्ती का
नूरुल हसन नूर
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ना'त-ओ-मनक़बत
किस दर्जा बुलंदी पे क़िस्मत का सितारा हैदामन मेरे हाथों में ख़्वाजा जी तुम्हारा है
फ़ना बुलंदशहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
सिद्क़-ओ-सफ़ा में यकता है दर्जा हुसैन काइस्लाम की बक़ा भी है सदक़ा हुसैन का
वजाहत हुसैन दाइम
सूफ़ी उद्धरण
इंकार इक़रार की एक हालत है, उसका एक दर्जा है, इंकार को इक़रार तक पहुंचाना, , बुद्धिमानी का काम है, उसी तरह कुफ़्र को इस्लाम तक लाना, ईमान वाले की ख़्वाहिश होना चाहिए।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी उद्धरण
सबसे ज़्यादा बद-क़िस्मत इन्सान वो है जो हद दर्जा ग़रीब हो और ख़ुदा पर यक़ीन न रखता हो।
सबसे ज़्यादा बद-क़िस्मत इन्सान वो है जो हद दर्जा ग़रीब हो और ख़ुदा पर यक़ीन न रखता हो।
वासिफ़ अली वासिफ़
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी