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ना'त-ओ-मनक़बत
सदक़ा दो वालिद का अपने और दादा जान कादर पे साइल कह रहा है हज़रत-ए-मुस्लिम पिया
सय्यद हसन अहमद
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ जान-ए-मा ऐ जान-ए-मा ऐ कुफ़्र-ओ-ईमान-ए-माख़्वाहम कि ईं ख़र-मोहरः रा गौहर कुनी दर कान-ए-मा
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
जान-ए-जान-ए-मुस्तफ़ा-ओ-मुर्तज़ा आने को हैसय्यदा की गोद में इक मह-लक़ा आने को है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत हसन जान अबुल उलाई
हमारे सूबा-ए-बिहार में शहसराम को ख़ास दर्जा हासिल है।यहाँ औलिया ओ अस्फ़िया और शाहान ए ज़माना
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा सय्यद नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी
आपकी आबाई हवेलीअयोध्या में आपके ख़ानदान की बहुत हुरमत-ओ-अदब था और आपके वालिद-और दादा जान पश्मीना
सय्यद रिज़्वानुल्लाह वाहिदी
ग़ज़ल
जान-ओ- दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन काबंदा-ए-बे-ज़र-ओ-दीनार हूँ किन का उन का