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सूफ़ी कहानी
एक प्यासे का दीवार की ईंट तोड़ कर नदी में फेंकना- दफ़्तर-ए-दोम
एक नदी के किनारे बुलंद दीवार थी उस पर एक प्यासा बैठा था, और प्यासा भी
रूमी
कलाम
आईना-ख़ाना कर दिया आ'लम को हुस्न कोक्या क्या दिखाते जल्वा हैं दीवार-ओ-दर से आप
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैंगिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ना'त-ओ-मनक़बत
दर-ब-दर फिरता हूँ मैं हैराँ-ओ-मुज़्तर या 'अलीकीजै आसान जो मुश्किल है मुझ पर या 'अली
नस्र फुलवारवी
ग़ज़ल
मज़ाक़-ए-इश्क़ को आज़ाद-ए-क़ैद-ए-रंग-ओ-बू देखाजुनूँ को बे-नियाज़-ए-बंदिश-ए-दीवार-ओ-दर देखा
सीमाब अकबराबादी
कलाम
मय-ख़ाने के दीवार-ओ-दर पर मस्ती मंडलाती फिरती हैहर मस्त की आँखों से देखो कौसर की शराब बरसती है