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दकनी सूफ़ी काव्य
यूसुफ़ जुलेखा
के दर चक में ज्यूँ अमोलक रतनसदफ़ में के ज्यूँ है ओ दुर्रे अदन
हाशमी बीजापुरी
क़िस्सा काव्य
हीर वारिस शाह
208. काज़ीदुर्रे शर्हा दे मार उधेड़ देसां, करां उमर ख़िताब दा न्याउं हीरे ।
वारिस शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
बदरुत्तमामे अफ़्सह-कलामे आ'ला-मक़ामे दुर्रे-यतीमेहामी-ए-उम्मत शाफ़े-ए'-महशर सल्लल्लाहु-अ'लैहि-वसल्लम
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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