Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama

ऐ रुख़त चूँ ख़ुल्द-ओ-ला'लत सलसबील

हाफ़िज़

ऐ रुख़त चूँ ख़ुल्द-ओ-ला'लत सलसबील

हाफ़िज़

रोचक तथ्य

अनुवाद: शंकर महेशवरी

रुख़त चूँ ख़ुल्द-ओ-ला'लत सलसबील

सलसबीलत कर्द जान-ओ-दिल सबील

अरी स्वर्ग है तेरा मुख, यह अधर स्वर्ग के निर्झर

आर्द्र किया है इन दोनों ने हृदय और प्राणों को

सब्ज़-पोशान-ए-ख़तत बर गिर्द-ए-लब

हम-चू हूरानंद गिर्द-ए-सलसबील

तेरे अधरों के समीप अँकुरी श्यामल रोमाली

मानो स्वर्ग प्रपातों को घेरे बैठीं श्यामाएं

नावक-ए-चश्म-ए-तू दर हर गोशःए

हम-चू मन उफ़्तादः दारद सद क़तील

कैसी है करतूत भला यह तेरे नेत्र-शरों की

मुझ जैसे शत-शत निहतों से भर रखते हर कोना

यारब ईं आतिश कि दर जान-ए-मनस्त

सर्द कुन ज़ान्साँ कि कर्दी बर ख़लील

यह जो मेरे प्राणों में बैठी भीषण दाहकता

इसको शीतल कर दे प्रभु ज्योँ की ख़लील की ज्वाला

मन नमी-याबम मजाल दोस्ताँ

गरचे दारद जमाले बस जमील

मेरे मित्रो, मुझ में ही शक्ति नहीं है ऐसी

यद्यपि उसकी सुषमा तो सुंदरतम से भी सुंदर

पा-ए-मा लंग अस्त-ओ-मंज़िल बस दराज़

दस्त-ए-मा कोताह-ओ-ख़ुर्मा बर नख़ील

लँगड़े मेरे पैर और लम्बी है मेरी मंज़िल

ओछे मेरे हाथ, छुहारा है दरख़्त पर ऊँचा

हुस्न-ए-ईं नज़्म अज़ बयाँ मसतग़ना अस्त

बर फ़रोग़-ए-ख़ौर कसे जोयद दलील

अभिव्यंजन से है स्वतंत्र इस कविता की सुंदरता

सुर्यप्रभा के लिए खोजता है प्रमाण कब कोई

आफ़रीं बर किल्क-ए-नक़्क़ाशे कि दाद

बक्र-ए-मा'नी रा चुनीं हुस्न-ए-जमील

धन्यवाद है चित्रकार की उस अद्भुत तुली को

रूप राशि से सजा दिया जिसने कि अर्ध-क्वाँरी को

मो'जिज़ अस्त ईं शे'र या सहर-ए-हलाल

हातिफ़ आवुर्द ईं सुख़न या जिब्रईल

चमतकार है काव्य चरण यह या विधिसम्मत जादू

ऐसी बातें तो संभव जिब्रील या कि हातिफ़ से

कस न-दानद गुफ़्त शे'रे ज़ीं नमत

कस न-यारद सुफ़्त दुर्रे ज़ीं क़बील

इस प्रकार से कविता कहना नहीं जानता कोई

इस प्रकार मोती को पोना नहीं जानता कोई

'हाफ़िज़ा' गर मा'नीए दारी बयार

वर्नः दा'वा नीस्त ग़ैर-अज़ क़ाल-ओ-कील

‘हाफ़िज़’ अगर जानता है तो अर्थ बता तू इसका

और नहीं तो सिवा तर्क कुछ धरा इन दा’वों में

स्रोत :

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY
बोलिए