ऐ रुख़त चूँ ख़ुल्द-ओ-ला'लत सलसबील
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
ऐ रुख़त चूँ ख़ुल्द-ओ-ला'लत सलसबील
सलसबीलत कर्द जान-ओ-दिल सबील
अरी स्वर्ग है तेरा मुख, यह अधर स्वर्ग के निर्झर
आर्द्र किया है इन दोनों ने हृदय और प्राणों को
सब्ज़-पोशान-ए-ख़तत बर गिर्द-ए-लब
हम-चू हूरानंद गिर्द-ए-सलसबील
तेरे अधरों के समीप अँकुरी श्यामल रोमाली
मानो स्वर्ग प्रपातों को घेरे बैठीं श्यामाएं
नावक-ए-चश्म-ए-तू दर हर गोशःए
हम-चू मन उफ़्तादः दारद सद क़तील
कैसी है करतूत भला यह तेरे नेत्र-शरों की
मुझ जैसे शत-शत निहतों से भर रखते हर कोना
यारब ईं आतिश कि दर जान-ए-मनस्त
सर्द कुन ज़ान्साँ कि कर्दी बर ख़लील
यह जो मेरे प्राणों में बैठी भीषण दाहकता
इसको शीतल कर दे प्रभु ज्योँ की ख़लील की ज्वाला
मन नमी-याबम मजाल ऐ दोस्ताँ
गरचे ऊ दारद जमाले बस जमील
ऐ मेरे मित्रो, मुझ में ही शक्ति नहीं है ऐसी
यद्यपि उसकी सुषमा तो सुंदरतम से भी सुंदर
पा-ए-मा लंग अस्त-ओ-मंज़िल बस दराज़
दस्त-ए-मा कोताह-ओ-ख़ुर्मा बर नख़ील
लँगड़े मेरे पैर और लम्बी है मेरी मंज़िल
ओछे मेरे हाथ, छुहारा है दरख़्त पर ऊँचा
हुस्न-ए-ईं नज़्म अज़ बयाँ मसतग़ना अस्त
बर फ़रोग़-ए-ख़ौर कसे जोयद दलील
अभिव्यंजन से है स्वतंत्र इस कविता की सुंदरता
सुर्यप्रभा के लिए खोजता है प्रमाण कब कोई
आफ़रीं बर किल्क-ए-नक़्क़ाशे कि दाद
बक्र-ए-मा'नी रा चुनीं हुस्न-ए-जमील
धन्यवाद है चित्रकार की उस अद्भुत तुली को
रूप राशि से सजा दिया जिसने कि अर्ध-क्वाँरी को
मो'जिज़ अस्त ईं शे'र या सहर-ए-हलाल
हातिफ़ आवुर्द ईं सुख़न या जिब्रईल
चमतकार है काव्य चरण यह या विधिसम्मत जादू
ऐसी बातें तो संभव जिब्रील या कि हातिफ़ से
कस न-दानद गुफ़्त शे'रे ज़ीं नमत
कस न-यारद सुफ़्त दुर्रे ज़ीं क़बील
इस प्रकार से कविता कहना नहीं जानता कोई
इस प्रकार मोती को पोना नहीं जानता कोई
'हाफ़िज़ा' गर मा'नीए दारी बयार
वर्नः दा'वा नीस्त ग़ैर-अज़ क़ाल-ओ-कील
‘हाफ़िज़’ अगर जानता है तो अर्थ बता तू इसका
और नहीं तो सिवा तर्क कुछ धरा न इन दा’वों में
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